Rapidly declining vulture population in Haryana हरियाणा में गिद्धों की तेजी से घटती संख्या: क्यों लगभग खत्म हो गया यह जरूरी पक्षी?
Rapidly declining vulture population in Haryana हरियाणा में कभी हजारों की संख्या में आसमान में घूमते दिखाई देने वाले गिद्ध आज लगभग लुप्त स्थिति में पहुंच गए हैं। राज्य में गिद्धों की आबादी पिछले दो दशकों में 95 से 99 प्रतिशत तक घट गई है, जो पर्यावरण विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। गिद्धों की कमी न सिर्फ जैव-विविधता को प्रभावित कर रही है, बल्कि ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक सफाई व्यवस्था भी कमजोर हो गई है। इस रिपोर्ट में हम समझते हैं कि आखिर क्यों हरियाणा जैसे कृषि-प्रधान राज्य से गिद्ध तेज़ी से गायब हो गए।
डाइक्लोफेनैक दवाई: सबसे बड़ा कारण
विशेषज्ञों के अनुसार गिद्धों के खत्म होने का सबसे प्रमुख कारण मवेशियों में उपयोग की जाने वाली दर्द निवारक दवाई डाइक्लोफेनैक है। यह दवाई पशुओं को चोट या बीमारी के दौरान दी जाती थी। जब दवाई वाले मवेशी की मौत होती, तो उसकी लाश खाने वाले गिद्धों में किडनी फेल होने की समस्या सामने आती थी। शोधों के अनुसार डाइक्लोफेनैक की थोड़ी-सी मात्रा भी गिद्ध को कुछ ही दिनों में मार सकती है। इसी कारण भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट आई, जिसका असर हरियाणा में सबसे ज्यादा दिखा।
घोंसले बनाने के स्थानों की कमी
हरियाणा में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिक क्षेत्रों के विस्तार और खेतों की साफ-सफाई ने बड़े पेड़ों और झाड़ियों की संख्या घटा दी है। गिद्ध आम तौर पर ऊँचे और पुराने पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं। जब पेड़ घटे, तो इनके सुरक्षित प्रजनन स्थान भी कम होते गए। कई गांवों में बिजली के तार, मोबाइल टावर और लगातार बढ़ते निर्माण कार्यों ने गिद्धों के प्राकृतिक आवास को और सीमित कर दिया।
खाने की कमी भी बड़ा कारण

पहले ग्रामीण क्षेत्रों में मरे हुए पशुओं को अक्सर खुले मैदान में छोड़ दिया जाता था, जिससे गिद्धों को पर्याप्त भोजन मिल जाता था। लेकिन डेयरी प्रबंधन, गांवों की सफाई प्रणालियों और मृत पशुओं के वैज्ञानिक निपटान की नई व्यवस्थाओं के कारण अब गिद्धों के लिए प्राकृतिक भोजन कम हो गया है। कुछ जगहों पर कीटनाशक या जहर से मरे पशुओं को खाने से भी गिद्धों की जान पर खतरा बढ़ा है।
सड़क दुर्घटनाएँ और बिजली के तार
गिद्ध भारी पक्षी होते हैं और उड़ान भरने के लिए उन्हें खुले स्थान की जरूरत होती है। शहरों और गांवों के बीच बढ़ते हाईवे और बिजली के तारों के कारण गिद्धों के टकराकर मरने की घटनाएँ भी सामने आती रही हैं। रात या सुबह के समय गिद्ध अक्सर तेज़ गाड़ियों की चपेट में आ जाते हैं।
गिद्धों के संरक्षण के प्रयास

गिद्धों की घटती संख्या को देखते हुए सरकार और वन्यजीव विभाग ने पिछले कुछ सालों में संरक्षण की दिशा में कई कदम उठाए हैं। हरियाणा के पिंजौर में स्थापित Vulture Conservation Breeding Centre पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहां गिद्धों की प्रजातियों को कैद में पाला जाता है और उनकी आबादी बढ़ाकर जंगलों में छोड़ा जाता है। साथ ही, हरियाणा के कुछ जिलों में “Vulture Safe Zones” बनाने पर भी काम जारी है, जहाँ डाइक्लोफेनैक पूरी तरह प्रतिबंधित है और गिद्धों को सुरक्षित भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व
गिद्धों को प्रकृति का “सफाई कर्मचारी” कहा जाता है। ये मृत पशुओं को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं और बीमारियों के फैलाव को रोकते हैं। भारत में पारंपरिक रूप से गिद्धों को शुभ भी माना जाता था। उनके खत्म होने से गांवों में शव प्रबंधन और स्वच्छता से जुड़े कई प्राकृतिक तंत्र प्रभावित हुए हैं। यदि जल्द कार्रवाई न की गई, तो आने वाले वर्षों में गिद्धों को बचाना और भी कठिन हो सकता है।
अभी कितने गिद्ध बचे हैं?
हरियाणा में गिद्धों की संख्या पहले की तुलना में बहुत कम है। मोरनी हिल्स, पिंजौर, कुरुक्षेत्र, कैथल और करनाल के कुछ ग्रामीण इलाके ही अब ऐसे स्थान हैं, जहाँ कभी-कभार गिद्धों के दिखने की जानकारी मिलती है। पिंजौर केंद्र में कैद प्रजनन से गिद्धों की आबादी बढ़ाने की कोशिशें चल रही हैं, पर इसे बड़े पैमाने पर सफल होने में समय लगेगा।










