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The East India Company 200 साल राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी, आज भारतीय बिजनेसमैन के नाम – पूरी कहानी

आज की ईस्ट इंडिया कंपनी (जो अब एक प्राइवेट लक्ज़री ब्रांड है) के मालिक भारतीय मूल के कारोबारी संजीव मेहता हैं, जिन्होंने 2005 में कंपनी को अलग‑अलग पुराने मालिकों से खरीदकर उसका पूरा स्वामित्व अपने हाथ में लिया और 2010 में इसे लंदन से फिर लॉन्च किया। यह वही नाम है, लेकिन अब यह सिर्फ ट्रेडमार्क और ब्रांड के रूप में चल रही आधुनिक कंपनी है, न कि वह औपनिवेशिक ईस्ट इंडिया कंपनी जो 19वीं सदी में खत्म हो गई थी।
इंट्रो
किस्मत का अनोखा खेल है कि जिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने कभी भारत में अंग्रेजों की एंट्री करवाई और आगे चलकर 200 साल से ज्यादा समय तक राज की राह तैयार की, आज उसी नाम वाली कंपनी की कमान एक भारतीय के हाथ में है। आधुनिक दौर में “The East India Company” ब्रांड के मालिक और CEO भारत में जन्मे, ब्रिटेन में बसे संजीव मेहता हैं, जिन्होंने इसे औपनिवेशिक प्रतीक से निकालकर लक्ज़री लाइफस्टाइल ब्रांड में बदल दिया है।
कौन हैं संजीव मेहता?
संजीव मेहता 1961 में भारत में जन्मे, बाद में लंदन शिफ्ट हुए और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपना करियर बनाया। उन्होंने 2005 के आसपास करीब 18 महीने की लंबी प्रक्रिया के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी नाम और उससे जुड़ी तमाम बौद्धिक संपत्तियां करीब 30–40 पुराने मालिकों से खरीद कर खुद को इसका अकेला मालिक बना लिया।
उनकी विज़न थी कि इतिहास के बोझ तले दबे इस नाम को एक नए रूप में, प्रीमियम और नैतिक ब्रांड के तौर पर दुनिया के सामने रखा जाए। मेहता लंदन से “The East India Company” के चेयरमैन और सीईओ के रूप में चाय, कॉफी, फाइन फूड, ज्वैलरी और लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स के ग्लोबल बिज़नेस को लीड कर रहे हैं।
कैसे बदली कंपनी की तस्वीर?
ऐतिहासिक ईस्ट इंडिया कंपनी 1600 में बनी और 19वीं सदी में ब्रिटिश संसद के कानून के जरिए भंग कर दी गई; वही कंपनी अब सिर्फ इतिहास की किताबों और आर्काइव्स में मौजूद है। मौजूदा “The East India Company” दरअसल उसी नाम, लोगो और उससे जुड़ी कहानियों के ट्रेडमार्क अधिकारों पर खड़ी की गई नई व्यावसायिक संस्था है, जो खुद को “हेरिटेज लक्ज़री ब्रांड” के रूप में पेश करती है।
2010 में संजीव मेहता ने लंदन के मेफेयर इलाके में कंपनी का फ्लैगशिप स्टोर खोला, जहां हाई‑एंड टी, कॉफी, चॉकलेट, गोल्ड कॉइन और प्रीमियम गिफ्ट आइटम्स बेचे जाते हैं। बाद में कंपनी ने अपने बिज़नेस को बुलियन, ज्वैलरी, स्कार्फ, गिफ्टिंग और इंटरनेशनल रिटेल तक बढ़ा लिया और आज यह ब्रिटेन व अन्य देशों में चुनिंदा स्टोर्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए मौजूद है।
इंडियन ओनरशिप और महिंद्रा का रोल
संजीव मेहता कई बार यह कह चुके हैं कि एक भारतीय के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक बनना उनके लिए एक तरह की “ऐतिहासिक रिडेम्पशन” जैसा अहसास है, क्योंकि कभी यही कंपनी भारत पर हुकूमत स्थापित करने का जरिया बनी थी। सोशल मीडिया और इंटरव्यूज़ में इस कहानी को “इतिहास को उल्टा घुमा देने वाला पल” भी कहा जाता है, जहां कभी भारत पर मालिकाना दावा करने वाली कंपनी आज भारतीय हाथों में है।
2011 में भारत के महिंद्रा ग्रुप ने भी इस कंपनी में माइनॉरिटी स्टेक लिया, जिससे यह ब्रांड भारतीय निवेश के साथ और मज़बूत हो गया और ग्लोबल विस्तार की नई राह खुली। आनंद महिंद्रा ने इसे औपनिवेशिक प्रतीक को भारतीय स्वामित्व में बदलने वाली कदम बताकर इसे “टर्निंग हिस्ट्री अपसाइड डाउन” जैसा भावनात्मक आयाम दिया।